Friday, May 10, 2019

आज़मगढ़ में क्या होने वाला है?- लोकसभा चुनाव 2019

2014 लोक सभा चुनाव प्रचार अपने शबाब पर था. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल पर पूरे देश की नज़र थी क्योंकि भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी वाराणसी से भी चुनाव लड़ रहे थे.

इस फ़ैसले की वजह से समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ने के लिए बगल के आज़मगढ़ पहुँच गए थे.

पाँच साल पहले मई महीने की तपती हुई उस दोपहर, हम सब सिर पर गमछा बांधे आज़मगढ़ में मोदी की एक रैली में उन्हें सुन रहे थे.

उन्होंने मंच से कहा था, "प्रदेश में बाप-बेटे की सरकार है और केंद्र में माँ-बेटे की सरकार है. आप बताइए आपके जीवन में दस साल में कोई बदलाव आया है क्या? आप मुझे मज़बूत सरकार दीजिए, किसानों की और देश की दिशा और दशा सुधार दूँगा".

मोदी के लैंड करने से कोई दस मिनट पहले फूलमती नाम की महिला मिली, जिनसे धूप बर्दाश्त नहीं हो पा रही थीं और वे अपने कुनबे के साथ वापस जा रही थीं.

उन्होंने कहा, "क्या होने वाला है, ये होने वाला है कि जीत लिंहिए, अपना घरे चल दिहीनए, कांव-कांव कर के निरहुवा चल दिहीनए, और मरिहे जनता अपने में."

इसी समय प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मंच से अपना भाषण दे रहे थे और कह रहे थे, "इस बार तो कमल खिलाना है आज़मगढ़ में".

थोड़ी देर बार मोदी के भाषण का प्रमुख निशाना था समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का महगठबंधन जिसे उन्होंने 'महामिलावटी महगठबंधन' बताया. किसानों की दशा और दिशा से ज़्यादा समय 'पाकिस्तान को सबक़ सिखाने' और 'राष्ट्रहित की रक्षा' करने वाले बयानों में बीता.

12 मई को लोक सभा चुनावों के तहत छठे चरण का मतदान होना है और इसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश की आज़मगढ़ सीट ख़ासी अहम बताई जा रही है.

हमेशा की तरह इस बार भी आज़मगढ़ के चुनावी समीकरण बेहद दिलचस्प हैं.

आज़मगढ़ में चुनाव आमतौर से जाति और धर्म की दूरबीन से परख कर होते आए हैं.

यहाँ एक तरफ़ अल्पसंख्यकों की अच्छी आबादी है तो दूसरी तरफ़ पिछड़े वर्ग की आबादी भी ख़ासी है.

पिछली बार अगर मुलायम सिंह यादव मैदान में थे तो इस बार उनके बेटे अखिलेश महागठबंधन के उम्मीदवार हैं.

कांग्रेस पार्टी ने यहाँ इस बार अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है. इलाक़े के जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने भी अपना कैंडिडेट ढूँढा.

पार्टी ने एक स्थानीय लेकिन बेहद लोकप्रिय भोजपुरी गायक दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' को मैदान में उतारा है जिनके कैम्पेन की ख़ासी चर्चा हो रही है.

शहर के बीचोंबीच अखिलेश के एक समर्थक, आनंद कीर्ति बौद्ध से बात हुई.

उन्होंने कहा, "वो क्या है, दुश्मन भोला-भाला लगता है, मगर अंदर से कसाई के समान होता है. एक तीर से तेरह निशाना इसलिए भाई-भाई को, अहीर-अहीर से लड़ा दिया".

आज़मगढ़ जिले का अपना एक प्रगतिशील इतिहास भी रहा है जिसमें शिबली नोमानी और कैफ़ी आज़मी जैसे दिग्गजों की गिनती होती है.

शहर से दूर लेकिन संसदीय क्षेत्र के भीतर आने वाले मुबारकपुर को ही ले लीजिए जहाँ का हथकरघा उद्योग एक ज़माने में विश्व विख्यात हुआ करता था.

घर-घर पावरलूम चला करती थीं और लोगों के मुताबिक़ ख़ुशहाली थी.

मुलाक़ात जमाल अहमद से हुई जिनकी साड़ी की दुकान है और पीछे पावरलूम मशीन बंद पड़ी है.

उन्होंने कहा, "बम धमाके और आतंकवाद के फ़िज़ूल मामलों की वजह से हमारे मुबारकपुर को तो नज़र लग गई. नोटबंदी ने दोहरी मार दे डाली. अब सोच रहे हैं किसी और व्यापार की तरफ़ बढ़ें, वरना खाने के लाले पड़ने लगेंगे".

ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में आज़मगढ़ एकमात्र ऐसी सीट थी जिस पर साल 2014 की 'मोदी लहर' का असर नहीं दिखा था.

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