Tuesday, April 23, 2019

सुप्रीम कोर्ट का राज्य सरकार को निर्देश- बिलकिस बानो को नौकरी, घर और 50 लाख रु. मुआवजा दें

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए है कि 2002 गुजरात दंगों में दुष्कर्म पीड़ित बिलकिस बानो को 50 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए। अदालत ने मंगलवार को गुजरात सरकार से कहा कि वह नियमों के मुताबिक बिलकिस बानो को एक सरकारी नौकरी और आवास भी मुहैया कराए।

3 मार्च, 2002 को गोधरा दंगों के वक्त अहमदाबाद के रंधिकपुर में 17 लोगों ने बिलकिस के परिवार पर हमला किया था। इस दौरान 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी। बिलकिस के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। उस वक्त वे 5 महीने की गर्भवती थीं।

गलत जांच करने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करे सरकार- कोर्ट

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 29 मार्च को बिलकिस बानो मामले में गलत जांच करने वाले 6 पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने को कहा था। अपने फैसले में कोर्ट ने ये कहा था कि उन्हें सेवा में नहीं रखा जा सकता।

मामले में 12 दोषियों को उम्रकैद की सजा

21 जनवरी, 2008 को मुंबई की कोर्ट ने 12 लोगों को मर्डर और गैंगरेप का आरोपी माना था। इसके बाद ट्रायल कोर्ट की ओर से सभी को उम्रकैद की सजा दी गई थी। सभी आरोपियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील की थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 4 मई 2019 के फैसले में सामूहिक बलात्कार के इस मामले में 12 दोषियों की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी थी। कोर्ट ने पुलिसकर्मियों और चिकित्सकों सहित सात व्यक्तियों को बरी करने का निचली अदालत का आदेश निरस्त कर दिया था।

इस पर राहुल की तरफ से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोर्ट ने उनसे सिर्फ स्पष्टीकरण मांगा था जो उन्होंने दिया। कोर्ट ने उन्हे नोटिस नहीं जारी किया था। चीफ जस्टिस ने कहा कि आप कह रहे हैं कि नोटिस नही जारी हुआ तो अब नोटिस दे रहे हैं।

राहुल के खिलाफ दायर याचिका रद्द नहीं
इसी के साथ कोर्ट ने राहुल की तरफ से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने राहुल के खिलाफ दायर याचिका रद्द करने की मांग की थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हमें लगता है कि याचिका पर राहुल को नोटिस जारी किया जा सकता है। उन्होंने रजिस्ट्रार को सुनवाई मंगलवार को रखने के निर्देश दिए।

सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई थी पुनर्विचार याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर 2018 के फैसले में राफेल डील को तय प्रक्रिया के तहत होना बताया था। अदालत ने उस वक्त डील को चुनौती देने वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दी थीं। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने डील के दस्तावेजों के आधार पर इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दायर की थीं। इनमें कुछ गोपनीय दस्तावेजों की फोटो कॉपी लगाई गई थीं। इस पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्र की ओर से आपत्ति दर्ज कराई थी थी। उन्होंने कहा था कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 के तहत विशेषाधिकार वाले गोपनीय दस्तावेजों की प्रतियों को पुनर्विचार याचिका का आधार नहीं बनाया जा सकता। शीर्ष अदालत ने उनकी यह दलील खारिज कर दी थी।

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