लुधियाना (पंजाब). रेलवे अब जल्द ही लंबी दूरी की पैसेंजर्स ट्रेन में शॉपिंग की सुविधा देने जा रहा है। पैसेंजर्स को ट्रेन में ही होम प्रोडक्ट, किचन एप्लायंस, फिटनेस और एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) बेचे जाएंगे। पश्चिम रेलवे ने इस प्रोजेक्ट का ट्रायल इस साल जनवरी में शुरू किया था, जिसे अच्छा रिस्पांस मिला। अब रेल मंत्रालय इसे पूरे देश में लागू करने की तैयारी कर रहा है।
योजना के तहत लोकसभा चुनाव के बाद रेलवे के सभी जोन इसके लिए टेंडर निकालेंगे। इससे पहले साल 2017 में ट्रेनों में बच्चों के लिए गर्म दूध और बेबी फूड के लिए रेलवे ने जननी सेवा शुरू की गई थी, जो थोड़े समय बाद ही बंद हो गई थी। इसे भी दोबारा शुरू किया जाएगा।
कामयाब रहा ट्रायल : रेल मंत्रालय के मुताबिक, पश्चिम रेलवे की 16 मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों में शॉपिंग की सुविधा ट्रायल बेस पर शुरू की थी। अच्छा रिस्पांस मिलने पर जनवरी महीने में इन ट्रेन का करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए में तीन साल का टेंडर दिया गया था। अब इस सुविधा को जल्द ही पूरे देश की मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों में शुरू किया जाएगा।
यात्रियों को खरीददारी के लिए मिलेगा कैटलॉग : यात्रियों को ट्रेन में सफर के दौरान पसंद का खाना, किचन इस्तेमाल की आइटम, दूध, ब्रेड, साबुन, दांतों की सफाई, शेविंग, डिटर्जेंट, बल्ब, बैटरी, दवाइयां, इलेक्ट्रॉनिक्स सामान उपलब्ध करवाए जाएंगे। ट्रेनों में सामान बेचने के लिए सुबह 8 से रात 9 बजे का समय निर्धारित होगा। इन सारी चीजों के लिए यात्रियों को कैटलॉग दिया जाएगा, जिसमें रेट लिखे होंगे।
डेबिट-क्रेडिट कार्ड से पेमेंट कर सकेंगे यात्री: लोगों को अवैध वेंडरों और जाली सामान मिलने से बचाने के लिए हर शॉपिंग कार्ट में ठेकेदार की ओर से अधिकृत दो सेल्समैन वर्दी और आईकार्ड पहन कर मौजूद रहेंगे। कोई भी सामान खरीदने के लिए पैसेंजर कैश देने के साथ ही क्रेडिट और डेबिट कार्ड से भी पेमेंट कर सकेंगे।
दोबारा शुरू होगी जननी सेवा : रेलवे की ओर से साल 2017 में ट्रेनों में छोटे बच्चों के साथ सफर करने वाले यात्रियों के लिए जननी सेवा नाम से सुविधा शुरू की गई थी। इसमें आईआरसीटीसी के काउंटरों पर बेबी फूड रखने के निर्देश जारी किए थे। वहीं, छोटे बच्चों के लिए बेबी फूड, गर्म दूध, गर्म पानी, डाइपर समेत अन्य जरूरत का सामान भी देना शुरू किया गया था। इसके लिए यात्रियों का रिस्पांस काफी अच्छा था, लेकिन सही व्यवस्था न बन पाने के कारण कुछ समय बाद ही यह सुविधा ठप हो गई। रेलवे सूत्रों की मानें तो अब इसे दोबारा शुरू करने की तैयारी की जा रही है। बताया जा रहा है कि अब इसके लिए कड़े रूल बनाए जा रहे हैं जिसमें इन निर्देशों का पालन न करने वाले ठेकेदारों और वेंडरों पर कार्रवाई का भी प्रावधान रहेगा।
Tuesday, March 26, 2019
Wednesday, March 20, 2019
लंदन से पढ़ीं अमरमणि की बेटी तनुश्री चुनावी मैदान में, योगी के गढ़ में BJP को देंगी टक्कर
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के मुखिया शिवपाल यादव ने लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पहली सूची मंगलवार को जारी कर दी. पहली सूची में 31 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया गया है. सूची में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके अमरमणि त्रिपाठी की बेटी तनुश्री त्रिपाठी का भी नाम है. तनुश्री को पार्टी ने महाराजगंज लोकसभा सीट से टिकट दिया है.
पहली बार चुनावी मैदान में उतरीं तनुश्री के सामने कई सारी चुनौतियां हैं. तनुश्री ऐसी सीट पर किस्मत आजमा रही हैं जिसे भारतीय जनता पार्टी का गढ़ कहा जाता है. बीजेपी के पंकज चौधरी यहां के सांसद हैं. यह इलाका राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है. टिकट मिलने के बाद आजतक से बातचीत करते हुए तनुश्री ने कई मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी.
जब उनसे पूछा गया कि आपने क्यों महाराजगंज ही सीट चुनी तो उन्होंने कहा कि मैंने महाराजगंज सीट नहीं चुनी, इस सीट ने मुझे चुना है. उन्होंने कहा कि जो भी हुआ अचानक हुआ. मैंने कभी टिकट नहीं मांगा था. लेकिन हां अगर मुझे टिकट मिला है तो मैं इसका स्वागत करती हूं और पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करूंगी.
उन्होंने कहा कि महाराजगंज के अंतर्गत आने वाली विधानसभा की 5 सीटों में से 3 सीटें नौतनवां, फरेंदा और सिसवा के लोग हमारे साथ हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि हमें ही जीत मिलेगी. उन्होंने कहा कि 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान भाई अमनमणि के प्रचार में हमने हिस्सा लिया था. उस दौरान बहुत कुछ सीखने को मिला था, जिसका फायदा इस चुनाव में मिलेगा.
तनुश्री ने आगे कहा कि यहां के सांसद पंकज चौधरी को लेकर लोगों में गुस्सा है. लोगों का मानना है कि ऐसे सांसद की क्या जरूरत जो क्षेत्र के लिए काम न करे. किसानों में खासतौर से पंकज चौधरी के खिलाफ नाराजगी है. यहां के लोगों के पास विकल्प की कमी है.
11 जनवरी 1990 को गोरखपुर में जन्मी तनुश्री को राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिता अमरमणि त्रिपाठी यूपी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. फिलहाल वे मुधमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे हैं. तनुश्री के भाई अमनमणि त्रिपाठी नौतनवां विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक हैं. अमनमणि की हाल के दिनों में सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात को लेकर फोटो सामने आई थी. जब aajtak.in ने तनुश्री से सवाल किया कि क्या अमनमणि बीजेपी में अपना भविष्य देख रहे हैं तो उन्होंने कहा कि पिता अमरमणि के योगी आदित्यनाथ से अच्छे संबंध रहे हैं. अमनमणि योगी से मुलाकात करते रहते हैं. वह उनसे राजनीति के गुर सीखते रहते हैं.
नैनीताल के सेंट मेरी कॉन्वेंट स्कूल से स्कूली पढ़ाई करने वालीं तनुश्री कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के फुलटाइम राजनीति में आने से खुश हैं. उन्होंने कहा कि प्रियंका का आना एक महिला के तौर पर अच्छी बात है. उनके लिए सम्मान है. प्रियंका का फायदा कांग्रेस को जरूर मिलेगा. हालांकि इसका कितना फायदा होगा यह कहना मुश्किल है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से पढ़ाई कर चुकीं तनुश्री अपने पिता अमरमणि त्रिपाठी को अपना आदर्श मानती हैं. तनुश्री अपने भाई के साथ पिता के ही विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. राजनीति जरूर उनको विरासत में मिली है, लेकिन संसद पहुंचने के लिए उनको मेहनत करनी पड़ेगी और उनके सामने कई सारी चुनौतियां हैं. इन सभी चुनौतियों से वो कैसे पार पाएंगी ये देखने वाली बात होगी.
पहली बार चुनावी मैदान में उतरीं तनुश्री के सामने कई सारी चुनौतियां हैं. तनुश्री ऐसी सीट पर किस्मत आजमा रही हैं जिसे भारतीय जनता पार्टी का गढ़ कहा जाता है. बीजेपी के पंकज चौधरी यहां के सांसद हैं. यह इलाका राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है. टिकट मिलने के बाद आजतक से बातचीत करते हुए तनुश्री ने कई मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी.
जब उनसे पूछा गया कि आपने क्यों महाराजगंज ही सीट चुनी तो उन्होंने कहा कि मैंने महाराजगंज सीट नहीं चुनी, इस सीट ने मुझे चुना है. उन्होंने कहा कि जो भी हुआ अचानक हुआ. मैंने कभी टिकट नहीं मांगा था. लेकिन हां अगर मुझे टिकट मिला है तो मैं इसका स्वागत करती हूं और पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करूंगी.
उन्होंने कहा कि महाराजगंज के अंतर्गत आने वाली विधानसभा की 5 सीटों में से 3 सीटें नौतनवां, फरेंदा और सिसवा के लोग हमारे साथ हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि हमें ही जीत मिलेगी. उन्होंने कहा कि 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान भाई अमनमणि के प्रचार में हमने हिस्सा लिया था. उस दौरान बहुत कुछ सीखने को मिला था, जिसका फायदा इस चुनाव में मिलेगा.
तनुश्री ने आगे कहा कि यहां के सांसद पंकज चौधरी को लेकर लोगों में गुस्सा है. लोगों का मानना है कि ऐसे सांसद की क्या जरूरत जो क्षेत्र के लिए काम न करे. किसानों में खासतौर से पंकज चौधरी के खिलाफ नाराजगी है. यहां के लोगों के पास विकल्प की कमी है.
11 जनवरी 1990 को गोरखपुर में जन्मी तनुश्री को राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिता अमरमणि त्रिपाठी यूपी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. फिलहाल वे मुधमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे हैं. तनुश्री के भाई अमनमणि त्रिपाठी नौतनवां विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक हैं. अमनमणि की हाल के दिनों में सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात को लेकर फोटो सामने आई थी. जब aajtak.in ने तनुश्री से सवाल किया कि क्या अमनमणि बीजेपी में अपना भविष्य देख रहे हैं तो उन्होंने कहा कि पिता अमरमणि के योगी आदित्यनाथ से अच्छे संबंध रहे हैं. अमनमणि योगी से मुलाकात करते रहते हैं. वह उनसे राजनीति के गुर सीखते रहते हैं.
नैनीताल के सेंट मेरी कॉन्वेंट स्कूल से स्कूली पढ़ाई करने वालीं तनुश्री कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के फुलटाइम राजनीति में आने से खुश हैं. उन्होंने कहा कि प्रियंका का आना एक महिला के तौर पर अच्छी बात है. उनके लिए सम्मान है. प्रियंका का फायदा कांग्रेस को जरूर मिलेगा. हालांकि इसका कितना फायदा होगा यह कहना मुश्किल है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से पढ़ाई कर चुकीं तनुश्री अपने पिता अमरमणि त्रिपाठी को अपना आदर्श मानती हैं. तनुश्री अपने भाई के साथ पिता के ही विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. राजनीति जरूर उनको विरासत में मिली है, लेकिन संसद पहुंचने के लिए उनको मेहनत करनी पड़ेगी और उनके सामने कई सारी चुनौतियां हैं. इन सभी चुनौतियों से वो कैसे पार पाएंगी ये देखने वाली बात होगी.
Friday, March 8, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने मामला मध्यस्थों के पास भेजा, प्रक्रिया 4 हफ्ते में शुरू और 8 हफ्ते में खत्म होगी
नई दिल्ली. अयोध्या विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्यस्थों को सौंप दिया। मध्यस्थता की बातचीत फैजाबाद में होगी। जस्टिस फकीर मुहम्मद खलीफुल्ला मध्यस्थता पैनल की अध्यक्षता करेंगे। इस पैनल में श्री श्री रविशंकर और वकील श्रीराम पंचू भी होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैनल 4 हफ्ते में मध्यस्थता के जरिए विवाद निपटाने की प्रक्रिया शुरू करे। 8 हफ्ते में यह प्रक्रिया खत्म हो जानी चाहिए।
'पूरी प्रक्रिया गोपनीय होगी'
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि मध्यस्थता प्रक्रिया कोर्ट की निगरानी में होगी और इसे गोपनीय रखा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जरूरत पड़े तो मध्यस्थ और लोगों को पैनल में शामिल कर सकते हैं। वे कानूनी सहायता भी ले सकते हैं।
मध्यस्थों को उत्तरप्रदेश सरकार फैजाबाद में सारी सुविधाएं मुहैया कराएगी।
मध्यस्थता के माहिर रहे हैं पंचू
जस्टिस खलीफुल्ला : मूल रूप से तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में कराईकुडी के रहने वाले हैं। उनका जन्म 23 जुलाई 1951 को हुआ था। 1975 में उन्होंने वकालत शुरू की थी। वे मद्रास हाईकोर्ट में न्यायाधीश और इसके बाद जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रहे। उन्हें 2000 में सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के तौर नियुक्त किया गया। 2011 में उन्हें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
श्रीराम पंचू : वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू मध्यस्थता से केस सुलझाने में माहिर माने जाते हैं। कोर्ट से बाहर केस सुलझाने के लिए उन्होंने ‘द मीडिएशन चैंबर’ नाम की संस्था भी बनाई है। वे एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर्स के अध्यक्ष हैं। वे बोर्ड ऑफ इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टीट्यूट के बोर्ड में भी शामिल रहे हैं। असम और नागालैंड के बीच 500 किलोमीटर भूभाग का मामला सुलझाने के लिए उन्हें मध्यस्थ नियुक्त किया गया था।
श्रीश्री रविशंकर : आध्यात्मिक गुरु हैं। वे अयोध्या मामले में मध्यस्थता की निजी तौर पर कोशिश करते रहे हैं। इस संबंध में उन्होंने पक्षकारों से मुलाकात की थी। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर इस मसले को सुलझाने का एक फॉर्मूला भी पेश किया था।
'लक्ष्य की ओर चलना है'
श्रीश्री रविशंकर ने ट्वीट किया, "सबका सम्मान करना, सपनों को साकार करना, सदियों के संघर्ष का सुखांत करना और समाज में समरसता बनाए रखना - इस लक्ष्य की ओर सबको चलना है।"
'मुस्लिमों को अयोध्या पर दावा छोड़ना चाहिए'
अयोध्या मामले को मध्यस्थ को सौंपे जाने को लेकर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर मुस्लिमों में अयोध्या पर अपना दावा नहीं छोड़ा तो भारत सीरिया बन जाएगा। श्रीश्री को मध्यस्थ पैनल में शामिल करने पर ओवैसी ने कहा कि यह बेहतर होता कि सुप्रीम कोर्ट किसी तटस्थ व्यक्ति को नियुक्त करता।
14 अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर हो रही है। अदालत ने सुनवाई में केंद्र की उस याचिका को भी शामिल किया है, जिसमें सरकार ने गैर विवादित जमीन को उनके मालिकों को लौटाने की मांग की है।
1986: प्रधानमंत्री राजीव गांधी के वक्त तब के कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रेसिडेंट अली मियां नादवी के बीच बातचीत शुरू हुई थी, लेकिन नाकाम रही।
1990: तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर राव ने दोनों समुदायों के बीच गतिरोध तोड़ने की कोशिश की। उन्होंने उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार और राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत की मध्यस्थता में बात कराई, लेकिन कोई बात नहीं बनी।
1992: तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी इस विवाद को बातचीत से सुलझाने की कोशिश की। विवादित ढांचा गिराने के बाद उन्होंने जस्टिस लिब्रहान की अध्यक्षता में एक जांच कमीशन भी बनाया, जिसने 2009 में अपनी रिपोर्ट दी।
2002: अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार में हिंदू-मुस्लिम नेताओं से इस मसले पर बात करने के लिए पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी शत्रुघ्न सिन्हा की अध्यक्षता में अयोध्या सेल बनाया, लेकिन ये कोशिश भी नाकाम रही।
2003 से 2017 के बीच भी हुई कोशिशें
2003: कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की बात कही।
2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के तत्कालीन चीफ जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने इस मसले को बातचीत से सुलझाने का सुझाव दिया।
2016: ऑल इंडिया हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी और मुस्लिम पक्ष की तरफ से दायर याचिकाओं की अगुआई करने वाले मोहम्मद हाशिम अंसारी के बीच मुलाकात हुई। अंसारी ने हनुमान गढ़ी मंदिर के महंत ज्ञान दास से भी बातचीत शुरू की। बातचीत में योजना बनाई कि विवादित 70 एकड़ पर मंदिर और मस्जिद का निर्माण किया जाए और दोनों के बीच 100 फीट की दीवार रहे।
2016: मई में ऑल इंडिया अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने भी अंसारी से मुलाकात की, लेकिन बातचीत आगे बढ़ती, इससे पहले ही अंसारी का निधन हो गया। इसके बाद इसी साल रिटायर्ड जज जस्टिस पलक बसु ने भी कोर्ट के बाहर समझौते से इस मसले को सुलझाने का सुझाव दिया।
2017: मार्च में सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर सुनवाई के दौरान एक बार फिर मध्यस्थता की पेशकश की। तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने सुझाव दिया कि अगर दोनों पक्ष कोर्ट के बाहर इस मसले को सुलझाने के लिए राजी हैं, तो कोर्ट मध्यस्थता करने को तैयार है।
2017: नवंबर में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने भी इस मामले को बातचीत से सुलझाने की कोशिश की। उन्होंने दूसरे पक्ष से कई मुलाकात भी कीं, लेकिन इस बातचीत का कोई हल नहीं निकला।
'पूरी प्रक्रिया गोपनीय होगी'
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि मध्यस्थता प्रक्रिया कोर्ट की निगरानी में होगी और इसे गोपनीय रखा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जरूरत पड़े तो मध्यस्थ और लोगों को पैनल में शामिल कर सकते हैं। वे कानूनी सहायता भी ले सकते हैं।
मध्यस्थों को उत्तरप्रदेश सरकार फैजाबाद में सारी सुविधाएं मुहैया कराएगी।
मध्यस्थता के माहिर रहे हैं पंचू
जस्टिस खलीफुल्ला : मूल रूप से तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में कराईकुडी के रहने वाले हैं। उनका जन्म 23 जुलाई 1951 को हुआ था। 1975 में उन्होंने वकालत शुरू की थी। वे मद्रास हाईकोर्ट में न्यायाधीश और इसके बाद जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रहे। उन्हें 2000 में सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के तौर नियुक्त किया गया। 2011 में उन्हें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
श्रीराम पंचू : वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू मध्यस्थता से केस सुलझाने में माहिर माने जाते हैं। कोर्ट से बाहर केस सुलझाने के लिए उन्होंने ‘द मीडिएशन चैंबर’ नाम की संस्था भी बनाई है। वे एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर्स के अध्यक्ष हैं। वे बोर्ड ऑफ इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टीट्यूट के बोर्ड में भी शामिल रहे हैं। असम और नागालैंड के बीच 500 किलोमीटर भूभाग का मामला सुलझाने के लिए उन्हें मध्यस्थ नियुक्त किया गया था।
श्रीश्री रविशंकर : आध्यात्मिक गुरु हैं। वे अयोध्या मामले में मध्यस्थता की निजी तौर पर कोशिश करते रहे हैं। इस संबंध में उन्होंने पक्षकारों से मुलाकात की थी। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर इस मसले को सुलझाने का एक फॉर्मूला भी पेश किया था।
'लक्ष्य की ओर चलना है'
श्रीश्री रविशंकर ने ट्वीट किया, "सबका सम्मान करना, सपनों को साकार करना, सदियों के संघर्ष का सुखांत करना और समाज में समरसता बनाए रखना - इस लक्ष्य की ओर सबको चलना है।"
'मुस्लिमों को अयोध्या पर दावा छोड़ना चाहिए'
अयोध्या मामले को मध्यस्थ को सौंपे जाने को लेकर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर मुस्लिमों में अयोध्या पर अपना दावा नहीं छोड़ा तो भारत सीरिया बन जाएगा। श्रीश्री को मध्यस्थ पैनल में शामिल करने पर ओवैसी ने कहा कि यह बेहतर होता कि सुप्रीम कोर्ट किसी तटस्थ व्यक्ति को नियुक्त करता।
14 अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर हो रही है। अदालत ने सुनवाई में केंद्र की उस याचिका को भी शामिल किया है, जिसमें सरकार ने गैर विवादित जमीन को उनके मालिकों को लौटाने की मांग की है।
1986: प्रधानमंत्री राजीव गांधी के वक्त तब के कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रेसिडेंट अली मियां नादवी के बीच बातचीत शुरू हुई थी, लेकिन नाकाम रही।
1990: तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर राव ने दोनों समुदायों के बीच गतिरोध तोड़ने की कोशिश की। उन्होंने उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार और राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत की मध्यस्थता में बात कराई, लेकिन कोई बात नहीं बनी।
1992: तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी इस विवाद को बातचीत से सुलझाने की कोशिश की। विवादित ढांचा गिराने के बाद उन्होंने जस्टिस लिब्रहान की अध्यक्षता में एक जांच कमीशन भी बनाया, जिसने 2009 में अपनी रिपोर्ट दी।
2002: अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार में हिंदू-मुस्लिम नेताओं से इस मसले पर बात करने के लिए पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी शत्रुघ्न सिन्हा की अध्यक्षता में अयोध्या सेल बनाया, लेकिन ये कोशिश भी नाकाम रही।
2003 से 2017 के बीच भी हुई कोशिशें
2003: कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की बात कही।
2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के तत्कालीन चीफ जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने इस मसले को बातचीत से सुलझाने का सुझाव दिया।
2016: ऑल इंडिया हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी और मुस्लिम पक्ष की तरफ से दायर याचिकाओं की अगुआई करने वाले मोहम्मद हाशिम अंसारी के बीच मुलाकात हुई। अंसारी ने हनुमान गढ़ी मंदिर के महंत ज्ञान दास से भी बातचीत शुरू की। बातचीत में योजना बनाई कि विवादित 70 एकड़ पर मंदिर और मस्जिद का निर्माण किया जाए और दोनों के बीच 100 फीट की दीवार रहे।
2016: मई में ऑल इंडिया अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने भी अंसारी से मुलाकात की, लेकिन बातचीत आगे बढ़ती, इससे पहले ही अंसारी का निधन हो गया। इसके बाद इसी साल रिटायर्ड जज जस्टिस पलक बसु ने भी कोर्ट के बाहर समझौते से इस मसले को सुलझाने का सुझाव दिया।
2017: मार्च में सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर सुनवाई के दौरान एक बार फिर मध्यस्थता की पेशकश की। तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने सुझाव दिया कि अगर दोनों पक्ष कोर्ट के बाहर इस मसले को सुलझाने के लिए राजी हैं, तो कोर्ट मध्यस्थता करने को तैयार है।
2017: नवंबर में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने भी इस मामले को बातचीत से सुलझाने की कोशिश की। उन्होंने दूसरे पक्ष से कई मुलाकात भी कीं, लेकिन इस बातचीत का कोई हल नहीं निकला।
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